बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप मनाए जाने वाले प्रमुख पर्व दशहरे को लेकर अंचल में अनूठी परंपराएं हैं।परंपरानुसार आज भी मध्यप्रदेश मे इन जगहो पर रावण को जमाई तो कहीं रक्षक मानकर आज भी होती है पूजा । पत्थरों मारकर दशानन का वध करने की अनूठी परंपरा अंचल में है।
मंदसौर के खानपुरा में 400 वर्षों से नामदेव समाज के लोग रावण को जमाई राजा मानकर पूजते आ रहे हैं। दशहरे पर सुबह ढोल-ढमाकों के साथ समाजजन प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर, शाम को प्रतीकात्मक वध की अनुमति भी मांगते हैं। क्षेत्र में बुजुर्ग महिलाएं अब भी रावण की प्रतिमा के सामने से गुजरते समय घूंघट निकालती हैं।
उज्जैन जिले में बड़नगर मार्ग पर स्थित ग्राम चिकली में रावण को रक्षक के रूप में भगवान की तरह पूजा जाता है। विजयादशमी पर रावण का विशेष पूजन होता है। मन्न्त पूरी होने पर ग्रामीण एक से 51 तक नारियल चढ़ाते हैं।
मंदसौर के खानपुरा में 400 वर्षों से नामदेव समाज के लोग रावण को जमाई राजा मानकर पूजते आ रहे हैं। दशहरे पर सुबह ढोल-ढमाकों के साथ समाजजन प्रतिमा की पूजा-अर्चना कर, शाम को प्रतीकात्मक वध की अनुमति भी मांगते हैं। क्षेत्र में बुजुर्ग महिलाएं अब भी रावण की प्रतिमा के सामने से गुजरते समय घूंघट निकालती हैं।
आगर से 17 किमी दूर ग्राम तनोड़िया में मटकों से निर्मित रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के प्रतीक पुतलों का पत्थरों से प्रतीकात्मक वध कर विजयादशमी पर्व मनाया जाता है।
नीमच के रावण रुंडी क्षेत्र में रावण दहन की परंपरा काफी पुरानी है। सालों पूर्व जिस जगह रावण दहन होता था, वह अतिक्रमण की भेंट चढ़ने लगी, इसलिए आयोजन समिति और प्रबुद्धजनों ने करीब 40 फीट ऊंची रावण की स्थायी प्रतिमा बनवा दी। परंपरा के अनुसार यहां शरद पूर्णिमा पर रावण दहन किया जाता है।